डीए बाबुओं का खेल
-प्रदेश शासन ने तलब की रिपोर्ट
मनस्वी वाणी संवाददाता
गाजियाबाद। यदि आपने जीडीए से भूखंड या भवन आंटित कराया है और कब्जा हासिल नहीं किया है तो वस्तु स्थिति की जानकारी करते रहे। हो सकता है कि मूल आवंटी को मृतक दिखाते हुए किसी अन्य के नाम भूखंड की रजिस्ट्री कर दी जाए। जी हा इसी तरह का मामला सामने आया है। मूल आवंटी की मानें तो उन्हें विकल्प के तौर पर दूसरा जो भूखंड दिया गया,वह साइज में छोटा था। प्रदेश शासन ने पूरे मामले को लेकर रिपोर्ट तलब की है। देखा जाए तो इस तरह का ये कोई नया मामला नहीं है। इससे पहले इंदिरापुरम में भी इसी तरह का मामला सामने आया था। उस वक्त मामले की जांच के दावे किए गए थे,लेकिन प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
उत्तराखंड के हल़्दानी के नंद किशोर टंडन के द्वारा लेटर के माध्यम से प्रदेश शासन के सामने उठाए प्रकरण के द्वारा खुलासा किया कि उन्हें प्राधिकरण के द्वारा वैशाली योजना के सेक्टर 2 में साढे तीन सौ मीटर साइज का भूखंड संख्या 2 ए आवंटित किया गया था। डिमांड नोट के अनुसार उनके द्वारा पूरा पैसा जमा करा दिया गया था। इस दौरान उजागर हुआ कि उन्हें जो भूखंड आवंटित किया गया था,उसकी दूसरी फाइल गुपचुप तरीके से तैयार करते हुए भूखंड किसी अन्य के नाम से आवंटित कर दिया गया। ये भी उजागर हुआ कि फाइल पर उनका फर्जी मृत्यु सर्टिफिकेट लगा दिया गया। प्रकरण के उजागर होने के बाद जब उनके द्वारा भाग दौड की गई,विकल्प के तौर पर 199 वर्ग मीटर साइज का भूखंड आवंटित किया गया। उस वक्त आश्वासन दिया गया कि शेष जमीन का जल्द आवंटन किया जाएगा। तमाम भागदौड के बाद भी सुनवायी नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि विकल्प के तौर पर भूखंड आवंटन की सूचना तो दी गई,लेकिन पर भुगतान का विवरण नहीं भेजा गया। जीडीए के द्वारा ब्याज जोड दिया गया। जबकि उनके द्वारा लिखित में अवगत कराया गया कि जब उन्हें पेमेंट शिडयूल नहीं भेजा गया,ऐसे मे ब्याज की गणना किया जाना गलत है,लेकिन सुनवायी नहीं हो रही है। देखा जाए तो जीडीए में धोखाधडी के प्रकरण बढ रहे है। बताते है कि मामले खुलने के बाद संबंधित स्टाफ के खिलाफ चूंकि एक्शन नहीं होता है,इसी लिए इस तरह के मामले बढ रहे है।